वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी के बिल का मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि पी चिदंबरम और इंदिरा जयसिंह के बिल को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। दिल्ली सरकार के पैनल के वकील नहीं होने के बाद भी पी चिदंबरम व इंदिरा जय सिंह को नौ लाख रुपए से ज्यादा का भुगतान किया गया।
राष्ट्रीय सहारा अखबार में छपी खबर के अनुसार दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष के सचिव प्रसन्न कुमार सूर्य देवरा से संबंधित मामले की कोर्ट में पैरवी करने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम और इंदिराजयसिंह को रखा गया। दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं को 9.65 लाख का बिल भुगतान किया गया। इस बड़े भुगतान के लिए नियमानुसार कानून और वित्त विभाग से अनुमति लेना जरूरी है। दिल्ली सरकार के पैनल में ना होने के कारण इन्हें भुगतान करने के लिए कानून विभाग की पहले से अनुमति लेना जरूरी है। चिदंबरम और इंदिरा जयसिंह के भुगतान को लेकर विवाद इसलिए और गहरा गया है कि दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले में रामजेठमलानी के करीब चार करोड़ रुपए के बिल को उप राज्यपाल ने अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया था।
दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष के सचिव प्रसन्न कुमार सूर्य देवरा दूरदर्शन के अधिकारी हैं। वो एक वर्ष की सेवा देने के लिए विधान सभा अध्यक्ष के सचिव बने। दूरदर्शन ने उन्हें वापस बुला लिया। इसके साथ ही सात महीने पहले एलजी ने विधान सभा अध्यक्ष के सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया। विधान सभा अध्यक्ष ने एलजी के आदेश को मानने से इनकार कर दिया। विवाद बढ़ने पर इस मामले में कोर्ट में पैरवी के लिए पी चिदंबरम और इंदिरा जय सिंह को रखा गया। जेठमलानी की तरह सूर्यदेवरा मामले में वकीलों के 9.65 लाख रुपए बिल का मामला गहरा गया है। लेकिन आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार में आम लोगों के पैसों का गलत इस्तेमाल पहली बार नहीं हो रहा।
सरकारी खजाने से निजी बिल का भुगतान
आप संयोजक केजरीवाल केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के ऊपर वित्तीय अनियमितता आरोप लगाने के मामले में मानहानि का मामला झेल रहे हैं। केजरीवाल इस केस की फीस दिल्ली की जनता द्वारा दिए गए टैक्स से चुकाना चाहते हैं। केस में केजरीवाल की पैरवी राम जेठमलानी कर रहे हैं। जेठमलानी ने केस लड़ने के लिए केजरीवाल को 3.42 करोड़ रुपए का बिल भेजा है। इस निजी केस के मामले में दिल्ली सरकार ने बिल का भुगतान करने के लिए उपराज्यपाल को खत लिखा है।
इसके बाद दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने केजरीवाल पर जनता के पैसों को केस लड़ने के लिए जेठमलानी को दिए जाने का आरोप लगाया।
. @ArvindKejriwal paid Rs 4 Crore Delhi Public money to Mr Ram jethmalanai in his personal legal case (Sh Jaitly Defmiantion case) pic.twitter.com/aR2wNwpN8N
— Tajinder Pal S Bagga (@TajinderBagga) April 3, 2017
Why @ArvindKejriwal ji is silent on this letters ? I challenge Kejriwal ji to debate with me on this issue. https://t.co/P9K3mIlBe3
— Tajinder Pal S Bagga (@TajinderBagga) April 3, 2017
ऐसा नहीं है कि केजरीवाल सरकार पहली बार यह कर रही है। इसके पहले भी सरकारी धन का दुरुपयोग पार्टी और परिवार पर किया जाता रहा है। कभी इलाज तो कभी मौज-मस्ती के नाम पर टैक्स के पैसे को पानी की तरह बहाया जाता रहा है।
दिल्ली छोड़ इलाज के लिए बाहर जाना
दिल्ली में विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधा होते हुए भी केजरीवाल इलाज के लिए बेंगलुरू के जिंदल प्राकृतिक उपचार केंद्र जाते हैं। दिल्ली के अस्पताल को वर्ल्ड क्लास का बनाने का दावा करने वाले केजरीवाल खुद अपने अस्पताल पर भरोसा नहीं करते। जिंदल प्राकृतिक उपचार केंद्र में इलाज काफी महंगा है। बताया जाता है कि फाइव स्टार सुविधा वाले इस उपचार केंद्र में इलाज का खर्च करीब दो से ढ़ाई लाख रुपए प्रतिदिन का आता है। आप समझ सकते है कि 15 से 18 दिन का खर्च कितना आता होगा। जब से वे दिल्ली के सीएम बने हैं तब से दो बार यहां इलाज करवाने जा चुके हैं। इन सभी खर्च को दिल्ली सरकार वहन करती है। बताया जाता है कि इस अस्पताल में इनके इलाज पर करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं।
विज्ञापनों पर बहाया जनता का पैसा
केजरीवाल पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का भी आरोप लग रहा है। गाइडलाइंस का उल्लंघन करने के कारण केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से 97 करोड़ रुपए वसूले जाएंगे। दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्य सचिव एमएम कुट्टी को विज्ञापन में खर्च पैसा वसूलने को कहा है। जांच समिति की रिपोर्ट के बाद यह आदेश जारी किया गया है। तीन सदस्यीय समिति के अनुसार केजरीवाल सरकार ने आम जनता का पैसा विज्ञापन पर खर्च किया। आम आदमी पार्टी को एक महीने के भीतर इस राशि को जमा करना होगा। केजरीवाल सरकार पर दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों में ऐसे विज्ञापन जारी करने का आरोप है जिनमें आप और केजरीवाल का प्रचार करने की मंशा झलकती है। प्रचार पर 97 करोड़ रुपए खर्च किए गए। बताया जा रहा है कि ये विज्ञापन तय मानकों के मुताबिक जारी नहीं किए गए थे।
विज्ञापनों के माध्यम से केजरीवाल के चेहरे का प्रयोग किया गया। इस मामले में एक साल पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने का आरोप था। इन आरोपों में गलत और झूठे विज्ञापन देने और खुद के प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी का प्रयोग करने का आरोप शामिल था। इसके पहले सीएजी की रिपोर्ट में भी केजरीवाल सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के विज्ञापन निर्देशों का उल्लंघन करने की बात कही गई थी।
बेतुके विज्ञापनों पर पैसों की बर्बादी
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी CAG की रिपोर्ट के मुताबिक केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना कर करोड़ों रुपए के विज्ञापन जारी किए। सरकार की इमेज चमकाने के चक्कर में जनता के 21.62 करोड़ रुपये पानी की तरह बहाए गए। इतना ही नहीं केजरीवाल सरकार ने अन्य राज्यों में भी विज्ञापन पर 18.39 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। कैग के मुताबिक 2.15 करोड़ रुपये के विज्ञापन ऐसे हैं जो बेतुके हैं। शब्दार्थ नाम की प्राइवेट एड एजेंसी (आरोप है कि डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के साले की है कंपनी) को 3.63 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया जिसकी जरूरत नहीं थी।
चाय-समोसे पर करोड़ों लुटाए
फरवरी 2015 से अगस्त 2016 के बीच केजरीवाल के कार्यालय में 1.20 करोड़ रुपये के समोसे और चाय का खर्च दिखाया गया है। आरटीआई के जरिए इस बात की सूचना सार्वजनिक हुई। आम आदमी पार्टी के अंदरखाने की हकीकत सामने आ गई। इसी आरटीआई से यह भी पता चला कि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के सचिवालय स्थित कार्यालय में 8.6 लाख और कैंप आफिस में 6.5 लाख रुपये का चाय और स्नैक्स में खर्च किए गए।
दावत में उड़े लाखों
केजरीवाल ने सरकार की दूसरी वर्षगांठ मनाने के लिए 11-12 फरवरी, 2016 को अपने आवास पर दावत दी। एक थाली का खर्च 12, 000 रुपये था। नियमों के मुताबिक दावतों में खाने का खर्च 2, 500 रुपये प्रति थाली से अधिक नहीं हो सकता है। लेकिन नियमों की अनदेखी कर ताज होटल में दिए गए इस दावत में 11.4 लाख रुपये का खर्च आया था।
सैर सपाटे में लुटाया जनता का पैसा
2016 में जब दिल्ली में डेंगू का कहर था तो राज्य के डिप्टी सीएम फिनलैंड में मौज-मस्ती कर रहे थे। उपराज्यपाल की डांट पड़ी तो वापस आए। इसी तरह 11 अगस्त से 16 अगस्त, 2015 के बीच मनीष सिसोदिया ब्राजील की यात्रा पर गए। प्रोटोकॉल तोड़ अर्जेंटिना में इग्वाजू फॉल देखने चले गए। इसमें सरकार को 29 लाख रुपयों का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ा। बिजनेस क्लास में सफर करने वाला ये आम आदमी सितंबर, 2015 में न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया भी गए। जून 2016 में बर्लिन की भी यात्रा की। इसी तरह मंत्री सत्येंद्र जैन और अन्य मंत्री, विधायक भी विदेश यात्राओं पर जनता का पैसा पानी की तरह बहाया।
अपने ही रिश्तेदार को बनाया ओएसडी
केजरीवाल ने अपने रिश्तेदार डॉ. निकुंज अग्रवाल की नियुक्ति वेकेंसी न होने के बावजूद की गई। पहले तो हस्तलिखित मंगवाए और इसी अवैध आवेदन के आधार पर उन्हें सीनियर रेजिडेंट बनवा दिया। इस नियुक्ति में सीबीसी गाइडलाइन्स और मेडिकल एथिक कोड की धज्जियां उड़ाई गईं। इसके एक महीने बाद सितंबर 2015 में उन्हें दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का ओएसडी बना दिया। अग्रवाल ने दिल्ली सरकार द्वारा फंड किए गए अंतरराष्ट्रीय टूर भी किए है। ऐसा इसलिए हुआ कि निकुंज अग्रवाल केजरीवाल की पत्नी की बहन के दामाद हैं।
अपने ही साढ़ू को दिया ठेका
केजरीवाल के अपने साढ़ू सुरेंद्र कुमार बंसल पर आरोप है कि उन्होंने पीडब्लूडी विभाग की मिलीभगत से कई ठेके लिए। इस मामले में तो पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने भी कहा, ‘‘हम भी लाचार है क्योंकि सुरेंद्र कुमार बंसल (दिल्ली के मुख्यमंत्री के ब्रदर-इन-लॉ) ने पूरे विभाग को लूटा है और यह एक खुला रहस्य है और बंसल के जरिए गैर कानूनी तरीके से कमाया गया पैसा पंजाब और गोवा के चुनाव में खर्च किया गया है।’’
बिजली बिल में लाखों गुल
एक आरटीआई के जरिये यह भी पता चला कि 19 मार्च 2015 से 4 सितंबर 2016 के बीच मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास स्थान का बिल 2.23 लाख रुपये था। लेकिन बिजली बिल बचाने की नसीहत देने वाले मंत्री सत्येंद्र जैन के घर 3.95 लाख रुपये का बिजली बिल आया।
सुविधाएं देने को बना दिए संसदीय सचिव
13 मार्च, 2015 को आप सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया। ये जानते हुए कि यह लाभ का पद है, उन्होंने ये कदम उठाया। दरअसल उनकी मंशा अपने सभी साथियों को प्रसन्न रखना था। उनका इरादा अपने विधायकों को गाड़ी, ऑफिस और अन्य सरकारी सुविधाओं से लैस करना था, ताकि उनके ये भ्रष्ट साथी ऐश कर सकें। लेकिन कोर्ट में चुनौती मिली तो इनकी हेकड़ी गुम हो गई। हालांकि केजरीवाल सरकार ने ऐसा कानून भी बनाने की कोशिश कि जिससे संसदीय सचिव का पद संवैधानिक हो जाए। लेकिन हाई कोर्ट के आदेश से मजबूर होकर ये फैसला निरस्त करना पड़ा।
बहरहाल 2015 से दिल्ली में सत्ता में आने के बाद से केजरीवाल खुद, उनके मंत्री और विधायक जनता का पैसा दिल खोलकर उड़ा रहे हैं। आप समझ सकते हैं कि आम आदमी के बीच चप्पल पहल कर चलने वाला यह आदमी कितना दिखावा करता है।