भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ‘संविधान बचाओ’ अभियान पर पलटवार किया है। बीजेपी अध्यक्ष ने सवाल उठाया है कि ये संविधान बचाओ अभियान है या परिवार बचाओ अभियान? श्री शाह ने फेसबुक पोस्ट लिखकर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने संविधान को सबसे अधिक ठेस पहुंचाई है। कांग्रेस पार्टी का उद्देश्य भारत के संविधान को बचाना नहीं है बल्कि एक परिवार को बचाना है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अगर कोई पार्टी, जिसने संविधान की भावना को खत्म किया है, तो वह कांग्रेस है। कांग्रेस लोकतंत्र का शासन नहीं चाहती बल्कि वंशवाद के शासन को कायम रखना चाहती है और इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष का यह फर्जी आंदोलन है।
बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस ने नफरत और विभाजन की रणनीति बनाई है। कांग्रेस पार्टी पर संवैधानिक संस्थाओं पर हमले का आरोप लगाते हुए श्री शाह ने कहा कि हमारी जिन संस्थाओं का अस्तित्व संविधान की वजह से है, उन्हें कांग्रेस की विध्वंशक राजनीति से बचाना होगा। कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट और सेना तक किसी भी संवैधानिक संस्था को नहीं छोड़ा है।
By repeatedly saying the Congress made the Constitution, @RahulGandhi is carrying forward his family tradition of insulting Dr. Ambedkar. The Nehru-Gandhi family insulted him when he was alive and his humiliating him even more now. Shameful and petty.
— Amit Shah (@AmitShah) 23 April 2018
Our institutions which are an outcome of our Constitution today need to be saved from the onslaught of the Congress Party. The Congress Party has spared no institution and is attacking the EC, Supreme Court, Army for petty political gains.
— Amit Shah (@AmitShah) 23 April 2018
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि राहुल गांधी बार-बार कहते हैं कि कांग्रेस ने संविधान का निर्माण किया है, ये सरासर संविधान निर्माण बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का अपमान है। उन्होंने कहा कि नेहरू-गांधी परिवार ने बाबासाहेब के जीवित रहने पर उनका अपमान किया और आज भी उनका अपमान किया जा रहा है, ये बेहद शर्मनाक और दुखद है।
If there is one party that has destroyed the spirit of our Constitution, it is the Congress. They do not want rule of democracy but they want rule of dynasty. Hence this is a farce of a movement by their President. https://t.co/n6mWPBHIRC
— Amit Shah (@AmitShah) 23 April 2018
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस पार्टी पर वंशवाद की राजनीति करने का जो आरोप लगाया है, वाकई में सच है। हम आपको बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी में वंशवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं
वंशवाद का दूसरा नाम है कांग्रेस पार्टी
कांग्रेस पार्टी वंशवाद का पर्याय है। कुछ महीनों पहले की ही बात है जब राहुल गांधी को इसी वंशवाद के चलते कांग्रेस पार्टी की बागडोर सौंपी गई थी। सभी जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर नौटंकी की गई, किसी भी नेता को दावेदारी का मौका नहीं दिया गया, और चाटुकारिता में विश्वास करने वाले कांग्रेसी नेताओं ने एक सुर में राहुल गांधी का नाम प्रस्तावित किया। नामांकन के दिन तक किसी और की दावेदारी नहीं आने पर राहुल गांधी को निर्विरोध रूप से कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। राहुल पहले उनकी मां सोनिया गांधी 19 वर्षों तक कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष रहीं थीं। अगर आप कांग्रेस पार्टी ने वंशवाद की राजनीति के चलते टिकट पाने वाले वालों की नाम देखें तो सूची काफी लंबी है। सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, नवीन जिंदल, आर पी एन सिंह, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई नाम है, जो सिर्फ वंशवाद के चलते हीं कांग्रेस पार्टी के प्रमुख चेहरे बने हुए हैं।
आजादी के बाद नेहरू-गांधी परिवार का गुलाम बना देश
नेहरू-गांधी परिवार में सिर्फ और सिर्फ वंशवाद की राजनीति होती है। यहां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सत्ता सौंपने की परंपरा रही है, बिलकुल राजशाही की तरह। आजादी के बाद से ही देश की सत्ता और कांग्रेस पार्टी पर इस परिवार का कब्जा रहा है। 69 साल में 48 साल तक इस परिवार ने राज किया, 38 साल सीधे-सीधे और 10 साल तक मनमोहन सरकार की डुगडुगी अपने पास रखी। परिवार की लगातार तीन पीढ़ियां – जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री के पद पर काबिज रहे। जबकि यूपीए सरकार के समय भी सत्ता की कमान सीधे-सीधे राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी के पास रहीं। कांग्रेस की इतनी बुरी हार के बाद भी वो पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और हर चुनाव में शिकस्त मिलनेके बाद भी उनके पुत्र राहुल गांधी की तरक्की हो रही है और वो इस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। इसके अलावा राजीव गांधी के भाई संजय गांधी हों या राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी और उनके पति रॉबर्ट वाड्रा, कांग्रेस पार्टी के भीतर इनके कद का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर वाड्रा पर आरोप भी लगते हैं तो पूरी कांग्रेस पार्टी विधवा विलाप करने लग जाती हैं।
आजादी के 70 साल, 53 साल तक शीर्ष पद पर कब्जा कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के लिए नेहरू-गांधी परिवार की समय सीमा निकालें तो आजादी के 70 साल में 53 साल तक इस परिवार का किसी न किसी या फिर दोनों पदों पर एक साथ कब्जा रहा है।
जस्टिस लोया के मामले में मनमुताबिक फैसला न मिलने पर कांग्रेस बौखला गई है। हताशा में कांग्रेस संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर ही प्रश्नचिह्न लगा रही है। कांग्रेस के इस कदम को देश के लोकतांत्रिक इतिहास में इमरजेंसी से जोड़कर देखा जा रहा है, जब इंदिरा गांधी ने देश की संवैधानिक संस्थाओं को तहस-नहस करके रख दिया था। गौरतलब है कि देश में पिछले 46 महीनों से कांग्रेस कुछ विपक्षी दलों के साथ मिलकर संवैधानिक संस्थाओं को जिस प्रकार निशाना बना रही है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया।
आइए अब एक नजर डालते हैं कि कांग्रेस ने कब-कब मनमुताबिक फैसला न होने पर संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्न खड़े किए।
जस्टिस लोया मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर सवाल
जस्टिस लोया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाते हुए सख्त टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”याचिकाकर्ताओं के वकील दुष्यंत दवे, इंदिरा जयसिंह और प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका पर एक फौजदारी हमला शुरू कर दिया और एससी के तीन न्यायिक अधिकारियों को अविश्वसनीय बताया, जो लोया के साथ नागपुर गए थे, उनके साथ एक गेस्ट हाउस में रहे और कहा गया कि लोया दिल का दौरा पड़ने से मर गए। तर्कों के दौरान वकीलों ने एससी के न्यायाधीशों की ओर संस्थागत सभ्यता नहीं बनाए रखा और गलत आरोप लगाया। ऐसे मामलों में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करना आदर्श होगा, जहां न्यायपालिका को बदनाम करने के लिए एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अदालत में लाई जाती है।”
जाहिर है देश की सुप्रीम अदालत इस बात से आहत है कि उसे राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि कांग्रेस ने अपनी कुत्सित कोशिश जारी रखी है। एक बार फिर कांग्रेस कुछ पार्टियों के साथमिलकर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का ढोंग कर रही है। जबकि कांग्रेस को पता है कि पूरे विपक्ष के साथ आने के बाद भी आंकड़ों के दृष्टिकोण से यह महाभियोग प्रस्ताव टिक नहीं पाएगा।
मक्का ब्लास्ट मामले में हाई कोर्ट के निर्णय पर सवाल
हिन्दू आतंकवाद का शब्द गढ़कर समूचे हिन्दू धर्म को बदनाम करने वाली कांग्रेस ने मक्का ब्लास्ट पर भी हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठा दिए। कांग्रेस ने इस तथ्य को छिपाने की कोशिश की कि उसके द्वारा ‘क्रिएटेड’ गवाह ही अपने बयानों से मुकर गए।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठा रहे सवाल
कांग्रेस ने हर हार के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोप लगाए, लेकिन जब चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को साबित करने की चुनौती दी तो राहुल गांधी समेत कोई भी कांग्रेसी नेता पहुंचा ही नहीं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त अचल कुमार ज्योति के कार्यकाल में भी कांग्रेस ने पक्षपात के आरोप लगाए, हालांकि वह साबित नहीं कर पाई। पिछले चार साल में कई वाकये ऐसे आए जब कांग्रेस ने हारने के बाद चुनाव आयोग पर ठीकरा फोड़ दिया,लेकिन जीत पर चुप्पी साध ली।
रिजर्व बैंक पर सवाल उठाए
वर्ष 2016 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और वित्त मंत्रालय के तालमेल से देश में डिमोनिटाइजेशन का निर्णय लिया गया। देश में भ्रष्टाचार पर प्रहार के लिए लिया गया निर्णय कांग्रेस को रास नहीं आया और इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया, जबकि ये एक संवैधानिक संस्था है, जो स्वायत्त है। आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल खत्म हुआ तो भी कांग्रेस ने उनकी सेवा को बरकरार रखने के लिए सरकार पर अनैतिक दबाव बनाने का भी काम किया।
सीएजी को कठघरे में खड़ा किया
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला घोटाला का जब से खुलासा हुआ तब से ही कांग्रेस ने संवैधानिक संस्था सीएजी पर ही हमला करना शुरू कर दिया। हालांकि जब जांच के दायरे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कांग्रेस के कई सांसद और मंत्री आ गए तो कांग्रेस की बोलती बंद हो गई। दरअसल कांग्रेस ने सीएजी पर तब ये आरोप लगाए थे, जब केंद्र की सत्ता में खुद कांग्रेस की सरकार थी।
कांग्रेस ने सेना को भी नहीं बख्शा
कांग्रेस ने एक ओर जहां आर्मी चीफ बिपिन रावत को ‘सड़क का गुंडा’ कहा तो वहीं दूसरी ओर सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाकर सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश की। इसी तरह जब सेना के मेजर गोगोई ने पत्थरबाज को जीप पर बांधकर सेना के दर्जनों जवानों की जान बचाई तो कांग्रेस ने इस पर भी राजनीति की। कांग्रेस ने अपनी ही सरकार के दौरान तत्कालीन आर्मी चीफ वीके सिंह की उम्र को लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की। यहां तक कि उनपर देश में आर्मी रूल लगाए जाने की साजिश रचने तक के आरोप लगा दिए।
नीति आयोग के गठन पर भी उठाए सवाल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब योजना आयोग की जगह नीति आयोग बनाने का निर्णय लिया तो कांग्रेस ने इसका पुरजोर विरोध किया। हालांकि बदलते वक्त के साथ देश को नीति आयोग जैसी संस्था की जरूरत है, क्योंकि देश में ‘कांपिटिटिव कॉपरेटिव फेडरलिज्म’ के सिस्टम को अमल में लाया गया है। इसमें राज्यों की सहभागिता बढ़ी है और योजनाओं के निर्माण और उसके बजट में भी राज्य सरकारों का सीधा संबंध स्थापित हो सका है।