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विश्लेषण: हिंदुओं में फूट और मुसलमानों की एकजुटता से जयनगर, कैराना और जोकीहाट में हारी भाजपा

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भारतीय जनता पार्टी अगर हाल के कुछ उपचुनाव में हारी है तो उसकी बड़ी वजह मुसलमानों की एकजुटता रही है। दरअसल मुस्लिम समाज किसी भी कीमत पर भारतीय जनता पार्टी को हराना चाहती है। इसलिए वह किसी भी वैसे प्रत्याशी को एकजुट होकर वोट कर रही है जो भाजपा को हराने में सक्षम हो रही है। जाहिर है यह हिंदू समाज के लिए एक सबक है कि वह भी एकजुट होकर मतदान करे। आइये हम इन सीटों पर हार और जीत का आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण करते हैं, जो आंखें खोलने वाली हैं।

खंडित हिंदुओं को एकजुट मुसलमानों ने हराया जयनगर
कर्नाटक के जयनगर में भाजपा की हार हुई और कांग्रेस ने ये सीट जीत ली। इस सीट पर 20 प्रतिशत मुसलमान हैं ओर उन्होंने एकजुट होकर 80 प्रतिशत हिंदुओं को हरा दिया। दरअसल जयनगर सीट पर सात इलाकों में चार में बीजेपी ने लीड बनाई और दो इलाकों में कांग्रेस और भाजपा के बीच वोटों का काफी कम अंतर रहा। लेकिन मुस्लिम बहुल गुरु पन्ना प्याला इलाके में मुसलमानों ने कांग्रेस को एकजुट होकर वोट किया।

गौरतलब है कि गुरु पन्ना प्याला में 22, 000 वोट हैं। जिनमें 19560 वोट कांग्रेस के उम्मीदवार को पड़े जो कि मुसलमानों के हैं। इस इलाके में उनकी आबादी 90 प्रतिशत है। जाहिर है इस एरिया में मुसलमानों ने एकजुट होकर कांग्रेस को वोट दिया। नीचे दिए गए ग्राफिक्स में ये साफ है कि हिंदू इलाकों में भाजपा ने कांग्रेस को शिकस्त दी, लेकिन मुस्लिम प्रभाव वाले इलाकों में वह पिछड़ गई।

कैराना की हार में छिपा है बीजेपी के विजय का संदेश
कैराना चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण कहता है कि भाजपा के लिए यह 2019 के लिहाज से बेहतर परिणाम रहा है, लेकिन उसे हिंदू वोटों को एकजुट करना होगा। चुनाव के नतीजों को देखें तो इस बार कुल 9 लाख 38 हजार 742 वोट पड़े। इनमें गठबंधन की उम्मीदवार को 4 लाख 81 हजार 618 वोट, जबकि बीजेपी के 4 लाख 36 हजार 564 वोट मिले। यानि जीत हार का अंतर 44 हजार 618 रहा। वोटिंग प्रतिशत का अंतर महज 4.6 प्रतिशत का रहा।

साफ है कि जिन चार दलों का गठबंधन हुआ उसने यहां पूरा जोर लगाया और मामूली अंतर से उनकी जीत हुई। दूसरी ओर वोटिंग प्रतिशत के लिहाज से देखें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र में कुल 69.5 प्रतिशत वोटिंग हुई थी जिसमें भाजपा को 38.2 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि संयुक्त दलों को 57 प्रतिशत मत मिले थे। यानि 2017 की तुलना में 2018 में भाजपा ने 15 प्रतिशत वोट बढ़ा लिया है।

वोट प्रतिशत की दृष्टि से देखें तो वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 72 प्रतिशत मतदान हुआ था, जिसमें भाजपा को 51 प्रतिशत मत मिले थे, जबकि 2017 में 69.5 प्रतिशत वोटिंग में भाजपा को महज 38 प्रतिशत मत मिले थे। जाहिर है इस चुनाव में 54 प्रतिशत टर्नआउट बेहद कम रहा। जिस प्रकार से मुसलमानों की गोलबंदी हुई और रमजान का महीना होने के कारण इनमें लगभग मुस्लिम समुदाय के लगभग 95 प्रतिशत मत पड़े। एक अनुमान के मुताबिक मुसलमानों ने तवस्सुम के पक्ष में वोट किया होगा।

बहरहाल इस चुनाव में जो वोटिंग टर्नआउट रहा इससे इस बात का अनुमान लगाना आसान है कि यह हिंदू वोट कम हुआ है। मौलवियों, मस्जिदों से एलान किए गए कि भाजपा को हराने में मदद कीजिए। गौरतलब है कि टोटल आबादी में हिंदुओं की संख्या 60 प्रतिशत है। अगर वोटों का विश्लेषण किया जाए तो यह साफ होता है कि हिंदू समुदाय का 77 प्रतिशत मत मृगांका सिंह के पक्ष में गिरे यानि हिंदुओं ने जातियों के दायरे से उठकर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया है। जाहिर है इस एकजुटता को 100 प्रतिशत तक ले जाना होगा। 

अररिया में आरजेडी-कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी
अररिया के जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में आरजेडी प्रत्याशी शहनवाज ने 41255 वोट से जीत हासिल की। उन्होंने जेडीयू उम्मीदवार मुर्शिद आलम को हराया। आरजेडी उम्मीदवार शहनवाज को 81240 वोट जबकि जेडीयू उम्मीदवार मुर्शिद आलम को 40015 वोट मिले। जाहिर है ये नतीजे बहुत कुछ कहते हैं। क्योंकि यहां भी हिंदुओं ने फूटकर मतदान किया और मुसलमानों ने मिलकर जेडीयू उम्मीदवार को हरा दिया। 

दरअसल हाल में ही अररिया लोकसभा उपचुनाव में यहां सांसद सरफराज आलम को 85 हजार वोट मिले थे। गौरतलब है कि अररिया लोकसभा उपचुनाव में आरजेडी के प्रत्याशी सरफराज आलम ने बीजेपी के प्रदीप सिंह को करीब 61 हजार वोटों से हरा दिया था। लेकिन उनके पिता दिवंगत तस्लीमुद्दीन की जीत से तुलना करें तो ये अंतर काफी कम रहा।

दरअसल, 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद इस सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इस सीट पर आरजेडी की ओर से तस्लीमुद्दीन ने बड़ी जीत दर्ज की थी। तस्लीमुद्दीन ने 41.81 प्रतिशत वोटों के साथ जीत हासिल की थी, जबकि श्री प्रदीप कुमार सिंह को 26.80 प्रतिशत मिला था। तस्लीमुद्दीन को जहां  4,07,978 वोट मिले थे वहीं प्रदीप सिंह को 2,61, 474 मिले थे। यानि मोदी लहर में भी वे करीब डेढ़ लाख वोटों से जीते थे। जाहिर है ये आरजेडी और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। इसके साथ ही यह बड़ी बात है कि अररिया के छह में से चार विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा ने जीत हासिल की थी। 

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