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केजरीवाल ने खोया ‘वैचारिक संतुलन’ चुनाव आयोग को कहा-धृतराष्ट्र

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लगता है कि दिल्ली में एमसीडी चुनाव परिणामों की आहट से दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपना वैचारिक संतुलन पूरी तरह खो चुके हैं। मुख्यमंत्री पद की गरिमा और मर्यादा को तो वो पहले भी कई बार तार-तार कर चुके हैं, लेकिन इसबार उन्होंने लोकतंत्र के प्रहरी निर्वाचन आयोग पर बहुत ही आपत्तिजनक टिप्पणी की है।अबकी बार भी उन्होंने ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका जताकर चुनाव आयोग के विरुद्ध जमकर भड़ास निकाली है और उसे धृतराष्ट्र तक की संज्ञा दे दी है। चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के लिए उन्होंने जिन शब्दों का चुनाव किया है, उसकी उम्मीद किसी पढ़े-लिखे इंसान से तो कभी नहीं की जा सकती। लेकिन सत्ता बचाए रखने के लिए अब शायद वो खुद को आईआईटियन की जगह सड़क छाप साबित करने में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं।

चुनाव आयोग बना धृतराष्ट्र- केजरीवाल 

दिल्ली के विवादास्पद सीएम अरविंद केजरीवाल ने एकबार फिर से ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया है। राजस्थान के धौलपुर में हुए विधानसभा उपचुनाव में उन्होंने ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सीधा हमला बोल दिया। शायद पहले के अनर्गल आरोपों की सच्चाई साफ हो जाने के चलते वो अंदर से बिलबिला उठे हैं। उन्होंने कहा है कि, “चुनाव आयोग एक तरह से धृतराष्ट्र बन गया है जो अपने बेटे दुर्योधन को किसी भी तरह साम-दाम-दंड-भेद करके सत्ता में पहुंचाना चाहता है।” इसके आगे उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग का मकसद अब चुनाव कराना नहीं, बल्कि बीजेपी को सत्ता में पहुंचाना है।”

एमसीडी चुनाव में गड़बड़ी की आशंका जताई 

उन्होंने आरोप लगाया कि, “कल पूरे देश में उपचुनाव हुए। धौलपुर में 18 मशीनों में गड़बड़ी पाई गई। ईवीएम की प्रोग्रामिंग में छेड़छाड़ हुई है, उनका कोड बदला गया है। किसने बदला…कब बदला और क्यों बदला गया? अब शक हो रहा है कि चुनाव आयोग जांच क्यों नहीं करवा रहा।” उन्होंने दिल्ली एमसीडी चुनाव के लिए राजस्थान से ईवीएम मंगवाए जाने की बात कहकर भी सवाल उठाए हैं। “बड़ा खतरा ये नजर आ रहा है कि दिल्ली के एमसीडी चुनाव के लिए मशीनें राजस्थान से आने वाली हैं। ये मशीनें राजस्थान से दिल्ली क्यों मंगाई जा रही हैं, जबकि वे दिल्ली में मौजूद हैं।”

भिंड में ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत गलत साबित हुई

यहां ये बताना जरूरी है कि मध्यप्रदेश के भिंड उपचुनाव से पहले एक ईवीएम के वीडियो को भी भ्रामक तरीके से पेश करके उसमें गड़बड़ी की खबरें फैलाई गई थी। केजरीवाल ने खुद उस वीडियो की सत्यता जाने बिना ताबड़तोड़ ट्वीट कर दिए थे। लेकिन बाद में चुनाव आयोग की जांच में साबित हो गया कि ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं थी।

पहले भी बना चुके हैं संवैधानिक संस्थाओं को निशाना

ये कोई पहला मामला नहीं है। स्वतंत्रता के बाद से सात दशकों में स्थापित संवैधानिक मान-मर्यादाओं को ताक पर रखकर कुछ भी बोल देने की उन्होंने जैसे आदत बना ली है। केजरीवाल ने एक प्रकार से संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ छापामार युद्ध छेड़ रखा है। क्रोधी स्वाभाव के साथ-साथ पद की लोलुपता में वो संविधान के नियमों की धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आ रहे। पिछले दो साल में उनकी बातों और कामों ने यही साबित किया है कि वह और उनकी टीम संविधान की मर्यादाओं के दायरों को नहीं मानती है। इससे पहले भी वो चुनाव आयोग के साथ-साथ लगभग हर संवैधानिक संस्था पर निशाना साध चुके हैं। संवैधानिक संस्थाओं पर केजरीवाल ने कब-कब चोट किए हैं, आइए इसकी पड़ताल करते हैं-

चुनाव आयोग पर धांधली का आरोप
11 मार्च,2017 को पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के परिणाम आने पर केजरीवाल बौखला गए। उनको उम्मीद थी कि पंजाब में आप की सरकार तो बनेगी ही और गोवा में भी उनकी स्थिति अच्छी रहेगा। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। अपनी इस खीझ और जनता के सामने अपनी हार की शर्म को इज्जत का रूप देने के लिए उन्होंने कहा कि मुझे जनता ने नहीं ईवीएम ने हराया है। चुनाव आयोग की मिलीभगत से मशीनों में छेड़छाड की गई है जिससे पंजाब में आप को पड़ने वाले वोट अकाली दल को ट्रांसफर हो गए। जबकि 2004 से पूरे देश में ईवीएम से ही चुनाव हो रहे हैं। दिल्ली में ही केजरीवाल को इन्ही मशीनों से 70 में से 67 सीटें मिलीं थीं, तब उन्होंने चुनाव आयोग पर गडबड़ी करने का कोई आरोप नहीं लगाया था।

गणतंत्र दिवस का बहिष्कार
क्या आप गणतंत्र दिवस के बहिष्कार की बात सोच सकते हैं? नहीं ना? ऐसा वही सोच सकता है जिन्हें भारतीय लोकतंत्र में भरोसा नहीं है। जैसे- आतंकवादी, नक्सलवादी। लेकिन आपकी सोच गलत है। ऐसा खुद को अराजकतावादी कहने वाले अरविंद केजरीवाल भी कर सकते हैं। केजरीवाल ने कहा था कि 26 जनवरी का उत्सव संसाधनों की बर्बादी है। जो इंसान मुख्यमंत्री रहते संविधान दिवस तक की परवाह नहीं करे, वो वाकई अराजकतावादी ही हो सकता है।

रिजर्व बैंक के कामकाज पर सवाल
नवंबर में नोटबंदी का विरोध करते हुए केजरीवाल ने रिजर्व बैंक के काम करने के तरीकों की जमकर आलोचना की और सरकार के सामने घुटने टेक कर स्वायत्तता समाप्त करने का आरोप लगाया। जिसका सोशल मीडिया में काफी मजाक भी उड़ाया गया।

सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल
29 सितम्बर 2016 को पाकिस्तान के खिलाफ सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर सवालिया निशान लगाते हुए बयान दिया कि पाकिस्तान किसी भी तरह की सर्जिकल स्ट्राइक से इनकार कर रहा है, इसलिए सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत देने चाहिए।

उच्च न्यायालय के फैसले को जनविरोधी बताया
4 अगस्त, 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जब यह आदेश दिया कि उपराज्यपाल केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं और राज्य के प्रशासन में, सरकार के निर्णय में उनकी सहमति आवश्यक है। इस निर्णय पर केजरीवाल के वरिष्ठ सहयोगी आशीष खेतान ने कहा की यह जनविरोधी फैसला है। इस फैसले पर उपमुख्यमंत्री और केजरीवाल के घनिष्ठ सहयोगी मनीष सिसोदिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उच्च न्यायलय दिल्ली को मात्र केन्द्र शासित क्षेत्र मानता है। यदि संविधान के अनुसार दिल्ली मात्र केन्द्र शासित प्रदेश है तो इसमें संशोधन करके दिल्ली को विधानसभा के साथ केन्द्र शासित क्षेत्र क्यों बनाया गया। यदि दिल्ली में उपराज्यपाल को ही प्रशासन देखना है तो क्यों संविधान का संशोधन करके एक राज्य विधानसभा दी गई? क्यों एक चुनी हुई सरकार की व्यवस्था बनायी गई? हमलोगों को निशाना बनाया गया है क्योंकि हमलोग भ्रष्टाचार से शहर को मुक्त करना चाहते हैं। मनीष सिसोदिया ने सीधे- सीधे उच्च न्यायलय पर निशाना साध दिया।


मुख्यमंत्री आवास के आसपास धारा 144 लागू किया

धरने और प्रदर्शन की राजनीति से सत्ता पर काबिज होने वाले केजरीवाल को जनता के धरने और प्रदर्शन से इतना डर लगने लगा कि उन्होंने 3 अगस्त 2016 को यह फरमान जारी कर दिया कि मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर धारा 144 लागू रहेगी। दूसरे ही दिन उपराज्यपाल ने इस आदेश को रद्द कर दिया। क्योंकि पुलिस कानून के तहत सीआरपीसी की धारा 144 लगाने का अधिकार डीसीपी या उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों के पास होता है और दिल्ली पुलिस उपराज्यपाल के अधीन काम करती है।

एसीबी में अपने अधिकारी को नियुक्त किया
दिल्ली पुलिस की एंटी करप्शन ब्रांच में किसी भी अधिकारी को नियुक्त करने का अधिकार दिल्ली के संविधान के तहत उपराज्यपाल के पास है। इस शक्ति का उपयोग करते हुए उपराज्पाल ने एमके मीणा को एसीबी का मुखिया बना दिया लेकिन केजरीवाल ने उपराज्यपाल की इस नियुक्ति को मानने से इनकार कर दिया और अपने एक अधिकारी एसएस यादव की नियुक्ति कर दी और यह आदेश दिया कि वह केन्द्र या राज्य किसी अधिकारी के जांच के लिए स्वतंत्र है। केजरीवाल के इस आदेश को बाद में उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार कर दिया।


डीडीसीए जांच के लिए सुब्रमण्यम कमेटी का गठन

21 दिसम्बर 2015 को केजरीवाल ने दिल्ली सरकार की कैबिनेट बैठक में डीडीसीए की जांच करने के लिए एक सदस्यीय गोपाल सुब्रमण्यम कमेटी को गठन करने का फैसला लिया। यह फैसला बौखलाहट में उस घटना के बाद लिया था जिसमें उनके मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर पर सीबीआई ने भ्रष्टाचार की आरोपों की जांच के छापा मारा था। जबकि संविधान के अनुसार दिल्ली सरकार उपराज्यपाल की सहमति से ही किसी भी जांच समीति का गठन कर सकती है। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल के इस फैसले को भी असंवैधानिक करार कर दिया।

इससे साफ होता है कि केजरीवाल को न्यायालय, संविधान, चुनाव आयोग,सेना, रिजर्व बैंक पर भी भरोसा नहीं है। तो प्रश्न फिर यह उठता है कि केजरीवाल पर क्यों भरोसा किया जाए।

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