Home केजरीवाल विशेष ‘अराजक’ राजनीति के जरिये दिल्ली का बेड़ा गर्क करने पर तुली AAP

‘अराजक’ राजनीति के जरिये दिल्ली का बेड़ा गर्क करने पर तुली AAP

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दिल्ली की सात कॉलोनियों में पुनर्विकसित करने के लिए पेड़ों की कटाई की योजना है। दिल्ली सरकार ने पहले इजाजत दी थी और एनबीसीसी से करोड़ों रुपये की उगाही भी कर ली है, लेकिन अचानक ही इसे विवाद में घसीट लिया गया है। अब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता कुछ एनजीओ के साथ मिलकर पेड़ कटाई का विरोध कर रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगा रहे हैं।

दरअसल एलजी के घर पर जबरदस्ती का धरना विवाद पैदा करने में नाकामयाबी हाथ लगी तो आम आदमी पार्टी अपनी खीझ मिटाने के लिए अब पेड़ काटने को मुद्दा बना रही है। हालांकि इसमें हैरत की बात यह है कि पेड़ों की कटाई की मंजूरी दिल्ली सरकार ने ही दी थी।

दिल्ली में पर्यावरण के नाम पर हंगामा खड़ा किया

दक्षिण दिल्ली की सात कॉलोनियों को पुनर्विकसित करने के लिए 14,000 पेड़ काटे जाने की योजना पर हंगामे के बीच उप राज्यपाल (एलजी) अनिल बैजल के कार्यालय ने भी साफ किया है कि नैरोजी नगर और नेताजी नगर के लिए प्रस्तावों को दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने मंजूरी दी थी।

दरअसल मीडिया के एक धड़े में यह धारणा बनाई जा रही है हुसैन की आपत्तियों के बावजूद एलजी ने पेड़ों को काटे जाने की इजाजत दी। हालांकि यह स्पष्ट है कि दिल्ली ट्री एक्ट के तहत पेड़ काटने की इजाजत दी जाती है। इस आदेश पर क्षेत्र विशेष के DFO के मंजूरी पत्र पर साइन होते हैं और यह अधिकारी इमरान हुसैन  के विभाग के अधीन आता है।

गौरतलब है कि यदि क्षेत्र एक हेक्टेयर से अधिक है तो केवल पर्यावरण मंत्री की सिफारिश के आधार पर ही उप राज्यपाल को प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है। जाहिर है कि नौरोजी नगर और नेताजी नगर के पुनर्विकास के संबंध में पेड़ काटने के प्रस्ताव को पर्यावरण मंत्री ने सहमति दी थी। उप राज्यपाल ने प्रस्तावों का समर्थन किया था। जाहिर है अगर केजरीवाल सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी है, तो पेड़ कटना मुमकिन ही नहीं।

स्पष्ट तथ्य यह भी है कि मोहम्मदपुर, त्यागराज नगर, सरोजनी नगर, कस्तूरबा नगर और श्रीनिवासपुरी कॉलोनियों के पुनर्विकास के संबंध में प्रस्तावों के लिए अब तक कोई अनुमति नहीं दी गई है।

हालांकि इस मामले को देखें तो यह साफ है कि एक की जगह तीन पेड़ लगाए जाने की योजना है। दरअसल दिल्ली में जमीन की कमी होने के कारण कार्यालयों एवं कर्मचारियों को आवास के लिए केंद्र सरकार ने यह पुनर्विकास योजना बनाई है। 

राजनीतिक नौटंकी पर उतर आई है केजरीवाल सरकार

दूसरी ओर NBCC ने भी साफ किया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। बयान जारी कर कहा गया है कि सरकार ने दो कॉलोनियों के लिए करीब 3400 पेड़ काटने की अनुमति दी थी।

स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक वो इलाके जिन्हें अनुमति दी गई-

  • नौरोजी नगर में 1454 पेड़ काटने की अनुमति दी गई थी, लेकिन यहां 1302 पेड़ ही काटे गए। अनुमति का नोटिफिकेशन 15 नवंबर 2017 को जारी किया गया था।
  • नेताजी नगर में कुल 2294 हरे पेड़ काटने की अनुमति दी गई थी। अनुमति के मुताबिक इसके पहले फेज़ में 856 पेड़ काटे जाने थे लेकिन सिर्फ 202 पेड़ ही काटे गए। अनुमति का नोटिफिकेशन 23 अप्रैल 2018 को जारी किया गया था।
  • किदवई नगर में पेड़ काटने की अनुमति का नोटिफिकेशन 2014 में ही जारी कर दिया गया था। स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक यहां अनुमति के बाद 1123 पेड़ काटे गए हैं।

इस स्टेटस रिपोर्ट से साफ है कि कुल मिलाकर अभी तक 4871 पेड़ों को काटने की मंज़ूरी दी गई, जिसमें से कुल 2627 पेड़ ही अभी तक काटे गए हैं। जाहिर है दिल्ली सरकार ने पहले इसकी इजाजत दी थी और अब वही इसका विरोध कर रही है। सरोजनी नगर इलाके में स्थानीय निवासी संगठनों को और कई NGO को उकसा कर अपनी राजनीति चमका रही है।

प्रदूषण रोकने में नाकामयाब रही आप सरकार ढूंढ रही बहाने

साफ है कि पहले दिल्ली सरकार ने पेड़ काटने की अनुमति दी और जब मामला तूल पकड़ा तो वह लोगों को गुमराह करने में लग गई है। दरअसल साढ़े तीन वर्ष सत्ता में रहते हुए अरविंद केजरीवाल सरकार दिल्ली में प्रदूषण को रोकने में नाकाम रही है। इसलिए दिल्ली की गिनती देश के सबसे प्रदूषित शहरों में होती है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार पर्यावरण प्रदूषण क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में 787 करोड़ रुपये वसूलने के बावजूद भी मात्र 1.23 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी है। दिल्ली सरकार की करोड़ों रुपये के प्रचार से लागू की गई ऑड-इवन योजना भी फेल रही थी। जाहिर है पर्यावरण के क्षेत्र में सरकार की असफलता छिपाने के लिए मूल विषय से ध्यान हटाने की भी एक कोशिश है। यानि सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है।

अपनी नाकामी का ठीकरा दूसरों के मत्थे मढ़ने में मास्टर हैं अरविंद केजरीवाल

पानी की किल्लत, प्रदूषण की मार, सीलिंग की समस्या, सड़कों की खराब हालत, अस्पतालों में असुविधाएं और कानून व्यवस्था जैसी समस्याओं से रोज दो-चार हो रही दिल्ली की जनता त्रस्त है। केजरीवाल एंड कंपनी जनता की समस्याओं का समाधान करने के बजाय हर रोज नई नौटंकी के साथ सामने आ जाती है। विशेष यह कि इसके लिए दोष भी वह दूसरों के मत्थे मढ़ने में नहीं एक पल की भी देरी नहीं करती।

दिल्ली में आइएएस हड़ताल पर तो केंद्र जिम्मेदार, प्रदेश में प्रदूषण के लिए आस-पास के राज्यपाल जिम्मेदार, दिल्ली में धूल भरी आंधी चली तो राजस्थान कसूरवार, पानी की किल्लत के लिए हरियाणा गुनहगार,  ठंड बढ़ी तो हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जिम्मेदार, कानून-व्यवस्था खराब तो केंद्र जिम्मेवार, सीलिंग के लिए केंद्र जिम्मेदार। जाहिर है केजरीवाल की फितरत ही यही हो गई है कि अपनी असफलता की टोपी किसी दूसरे को पहनाकर जनता को धोखा दिया जाए।

‘आप’ के अहंकार और अक्खड़पन ने दिल्ली को बनाया असफल प्रदेश

आम आदमी पार्टी की चीप सियासत से निकला चिपको अभियान एक बार फिर दिल्ली में अराजक माहौल तैयार कर रही है।  दरअसल 2015 में दिल्ली की जनता ने जब आम आदमी पार्टी के हाथ में सत्ता सौंपी  तब लोगों को बदलाव की राजनीति की एक नई शैली की उम्मीद थी। लेकिन बीते तीन सालों में दिल्ली के लोगों ने टकराव, जिद, धमकी और मनमानी वाली राजनीति ही देखी है। आम आदमी पार्टी की वादाखिलाफी, अहंकार और अक्खड़पन ने न सिर्फ दिल्ली की जनता के सपनों को तोड़ा है, बल्कि उस भरोसे को भी तोड़कर रख दिया जिस बुनियाद पर लोग व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद करते हैं।

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