Home समाचार ‘27 साल यूपी बेहाल’ की खटिया क्यों निकाल दी राहुलजी?

‘27 साल यूपी बेहाल’ की खटिया क्यों निकाल दी राहुलजी?

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खाट यात्रा लेकर यूपी का दौरा कर चुके राहुल के सुर क्यों बदल गये? क्यों 27 साल यूपी बेहाल के अपने ही नारे को भुला दिया। बैनरों-पोस्टरों और हॉर्डिंग से हटा दिया? रातों रात यूपी में ऐसा बदलाव क्यों और कैसे हो गया कि सत्ता के लिए गान ही बदल गया? या कि ईमान बदल गया? जिस गुन्डाराज से यूपी को बचाने के लिए आपने अभियान चलाया, उसी गुन्डा राज को समर्थन दे बैठे? समर्थन ही नहीं अब तो उसी गुन्डाराज की सवारी भी कर बैठे।

राहुलजी क्या यूपी को ये साथ पसंद है?– 27 साल यूपी बेहाल। और, अब कह रहे हैं राहुलजी कि यूपी को ये साथ पसंद है! यूपी को ये साथ बिल्कुल ‘ना’पसंद है। इसलिए अखिलेश यादव ने आपको 5 साल तक दूर रखा। अब जब चुनाव में हार तय लगने लगी, तो पप्पू मानकर आपको दोस्ती का वास्ता दिया। ये सच है कि आप दोनों पहले से दोस्त रहे हैं, एक साथ लोकसभा में रहे हैं। मगर, इस दोस्ती पर यूपी ने कभी मुहर नहीं लगायी। अगर यूपी को ये साथ पसंद होता, तो आप पहले से अखिलेश सरकार का हिस्सा होते। आपने नारा नहीं लगाया होता-27 साल यूपी बेहाल।

गुंडा राज क्या सुराज में बदल गया राहुलजी?– अभी कितने दिन बीते हैं आपकी खाट यात्रा के? आपने तो न सिर्फ अपने नारे की खटिया निकाल दी, बल्कि ‘गुंडाराज’ को रातों रात ‘सुराज’ बता डाला। जो प्रदेश अखिलेश यादव के राज में बलात्कार, हत्या, लूट, अपहरण, वसूली, दंगा, दलितों पर अत्याचार के मामलों में कीर्तिमान बना रहा था, उसी सरकार के यशोगान में जुट गये राहुलजी, क्यों? सत्ता के लिए? अंजाम भुगतना होगा। अखिलेश तो भुगतेंगे ही, आपको भी इसकी सज़ा मिलेगी।

क्यों पहन ली सर पे लाल टोपी समाजवादी?– अरे राहुलजी, ये क्या कर दिया आपने? नेहरू टोपी को अलविदा कह दिया! अखिलेश की दोस्ती पर अपनी टोपी भी कुर्बान कर दी! जरूरत की इस दोस्ती में अखिलेश तो आपको पप्पू बना ही रहे थे। आपने भी सर पे लाल ‘समाजवादी’ टोपी धारण कर ली! भूल गये कि ये ‘गुंडों की टोपी’ कहलाने लगी थी। दहशत की पहचान बन चुकी थी। आप खुद ऐसा मानते और कहते थे। इनसे लड़ते हुए सर कटाने को तैयार थे। लेकिन वाह री कुर्सी, वाह री सत्ता। इसके लिए राहुलजी आपने ‘गुंडागर्दी के समाजवाद’ के सामने सर झुका लिया! लाल टोपी पहन ली!

क्या यही है प्रोग्रेसिव एलायंस?– केंद्र में प्रोग्रेसिव एलायंस का हश्र तो जनता देख चुकी है। खुद मुलायम के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने भी ऐसा पीछा छुड़ाया था कि यूपी की समाजवादी सरकार में कांग्रेस को कभी सटने तक नहीं दिया। सत्ता के लिए केंद्र में कांग्रेस से जुड़े थे समाजवादी, सत्ता गयी बस अलग हो गये। अब ये कौन सा प्रोग्रेसिव एलायंस है राहुलजी? अखिलेश ने इससे पहले तो कभी आपको पूछा नहीं। 5 साल में आप कभी याद आए नहीं। अब गद्दी हिलने लगी, तो प्रोग्रेसिव एलायंस का ख्याल आया है? यूपी के लिए ये एलायंस नया है। पर प्रोग्रेस करेगी, ऐसे लक्षण तो नहीं दिखते।

राहुलजी कैसे बढ़ेंगे विकास से विजय की ओर?– जनता ने अखिलेश को ये मौका भी दिया। लेकिन अब जबकि वे फेल हो चुके हैं, तो उन्होंने नारा ही पलट दिया। नारा ऐसा पलटा कि उसका कुछ मतलब ही नहीं निकलता। राहुलजी, आप तो बड़े भाई हैं। आपको तो समझना चाहिए था। खुद मुलायम ने इस नारे को मूर्खता कहा था जब स्थापना दिवस पर पहली बार इसका इस्तेमाल हुआ। अगर विकास हुआ है तो विजय के लिए अभियान की जरूरत क्या है, जनता आपका साथ ऐसे भी नहीं छोड़ेगी। लेकिन अखिलेश और राहुल को जनता पर विश्वास कहां?

अपने मुंह मियां मिट्ठू कब तक बनते रहेंगे राहुलजी? – राहुल गांधी ने कहा है- “आपने संगम देखा है। जैसे गंगा और यमुना एक हो जाते हैं, वैसे ही दोनों पार्टियां एक होंगी और एक साथ लड़ेंगी।“ राहुलजी आपको पता है कि संगम बार-बार एक होने और अलग होने का नाम नहीं है। संगम पवित्र जगह होती है जहां कुंभ लगता है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अवसरवादी और अपवित्र गठबंधन को गंगा-यमुना क्यों बता रहे हैं? चुनावी फायदे के लिए एकजुटता संगम नहीं कहलाती। न तो कांग्रेस गंगा है ना ही समाजवादी पार्टी यमुना। एक भ्रष्टाचार की प्रतीक है दूसरी गुंडागर्दी की। ऐसे में अपने मुंह मियां मिट्ठू कब तक बने रहेंगे राहुलजी? जनता पोल खोल देगी।

क्यों- गुस्सा तो आपके डीएनए में है राहुलजी? – गुस्सा यूपी के डीएनए में नहीं, ये तो आपके डीएनए में है राहुलजी। देश ने देखा था जब आपने आस्तीनें तान कर कागज के टुकड़े फाड़े थे, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेइज्जती की थी। गुस्सा तो देश ने देखा था जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों का कत्ले आम हुआ था और आपके पिता राजीव गांधी ने कहा था कि जब बड़े पेड़ गिरते हैं तो धरती पर हलचल हो जाती है।

कहां रह गये सोनिया-मुलायम?- इतना बड़ा अवसर था। ‘गंगा-यमुना’ का संगम हो रहा था। न अखिलेश को आशीर्वाद देने उनके पिता मुलायम साथ दिखे, न राहुल की माता सोनिया साथ दिखीं। जब पत्रकारों ने सवाल किया तो राहुल क्या बोले वो भी सुनिए- “जो हमारी विचारधारा को पसंद करते हैं, वो इसमें शामिल हो सकते हैं”। मतलब ये अभी राहुल को पता नहीं है कि उनकी मम्मी या अखिलेश के पिता को उनकी विचारधारा पसंद है या नहीं। वाह राहुलजी, आप दोनों की विचारधारा तो यूपी की जनता को भी पसंद नहीं आने वाली। कहीं सोनिया-मुलायम की तरह वे भी पीछे न रह जाएं।

क्या गंगा-यमुना से सरस्वती निकली थी राहुलजी?- राहुल ने कहा कि यूपी में गंगा-युमना एक हुए हैं तो अब 300 सीटों की जीत के बाद प्रगति की सरस्वती बहने लगेगी। गंगा-यमुना से सरस्वती निकलती हो- ये ज्ञान कहां से ले आए राहुलजी? अब तक तो यही जाना जाता रहा है कि गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम इलाहाबाद में होता है। तीनों नदियां यहां मिलती हैं। अब सरस्वती विलुप्त हो चुकी हैं। पर, राहुलजी आपने तो ज्ञान की गंगा से यमुना होते हुए सरस्वती तक का जन्म दिखला दिया। वाह राहुलजी, वाह।

अवसरवाद का ये राग, अवसरवाद का ये साथ जनता समझ रही है। अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी अवसरवाद की नयी परिभाषा लिख रही है। सत्ता के लिए एक गंगा और दूसरा यमुना बने फिर रहे हैं। पर राजनीति के कुंभ में ये मुखौटा उतरने वाला है। तमाम सवालों के जवाब राहुल-अखिलेश को देने होंगे।

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