Home विचार यूपी के साथ धोखा है, मुलायम-अखिलेश का फैमिली ड्रामा

यूपी के साथ धोखा है, मुलायम-अखिलेश का फैमिली ड्रामा

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समाजवादी पार्टी में पिता-पुत्र के बीच की खींचतान और सुलह के ड्रामे के बीच जरा इस रिपोर्ट पर भी नजर डालिए। ये रिपोर्ट आपके लिए बेहद जरूरी है। अगर आपका मन पिता-पुत्र के सियासी दाव-पेंच से ऊब नहीं रहा है, तो यह रिपोर्ट आपके लिए और भी जरूरी है। कुछ मिनट समय देकर इसे जरूर पढ़िए और विचार कीजिए कि आने वाले सालों में उत्तर प्रदेश को किस दिशा में देखते हैं। यूं कहें तो कहां देखना चाहते हैं? क्योंकि चंद दिनों का ड्रामा भविष्य के लिए खतरनाक बन सकता है। खबर है कि मुलायम-अखिलेश के बीच चल रहे अनुनय-विनय और अभिनय की स्क्रिप्ट अमेरिका में बैठे अखिलेश यादव के एडवाइजर ने लिखा। आइए जरा इस रिपोर्ट को पढ़कर मन की आंख खोलने का प्रयास करते हैं।

उद्घाटन के फर्जीवाड़े से ध्यान भटकाने की चाल है ड्रामेबाजी
आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले अखिलेश यादव ने धड़ाधड़ परियोजनाओं के उद्घाटन करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। इसमें ज्यादातर योजनाएं वास्तविकता से कोसों दूर है। जो दिख रहा है, वह उद्घाटन होने के बाद भी, अब तक अधूरा है। अपने नाम के पत्थर देखने के शौकीन अखिलेश यादव ने महज 6 घंटे में 5500 परियोजनों का शिलान्यास, उद्घाटन और लोकार्पण करके जन सामान्य की आंखों में धूल झोंकने का काम किया। कुछ फर्जीवाड़े का उदाहरण, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे, लखनऊ मेट्रो, डायल 100, जनेश्वर मिश्र पार्क, जेपीएन इंटरनेशनल सेंटर, गोमती रिवरफ्रंट के रूप में देखा जा सकता है। इन नाकामी को छिपाने के लिए ड्रामेबाजी जारी है।

महिलाओं के लिए असुरक्षित प्रदेश
अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रीत्व काल में उत्तर प्रदेश महिलाओं के सुरक्षित नहीं रह गया है। आए दिन गैंग रेप की घटनाएं सामने आती रहती है। बुलंदशहर हाईवे गैंगरेप, बरेली, बदायूं, कानपुर, इटावा जैसे सैकड़ों उदाहरण है जो अपराध की पराकाष्ठा है। इन कांडों के आरोपियों के पीछे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सपा का बरदहस्त रहा है। औसतन तीन बच्चों का यौन शोषण होता है। ये सरकारी आंकड़ा है। हालांकि इतर स्थिति और भी भयावह है। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013-14 में बलात्कार की घटनाओं में 43 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। महिलाओं और लड़कियों के अपहरण जैसे अपराध 21 फीसदी बढ़े। उत्तर प्रदेश अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2014 में दुष्कर्म की 3467 घटनाएं हुई जो कि 2015 में बढ़कर 9075 हो गई। इन आंकड़ों से कालिख पुते चेहरे को ड्रामेबाजी से चमकाने का प्रयास हो रहा है।

अपराधी, भ्रष्टाचारी छवि के उम्मीदवारों से ध्यान हटाने के ड्रामा
अखिलेश यादव भले ही साफ – सुथरी छवि होने का डंका पीट रहे हों, लेकिन साफ-सुथरे हैं। यह उनके द्वारा दिए गए उम्मीदवारों की सूची से पता चलता है। अखिलेश यादव ने एक से बढ़कर एक गुनाहों में नामजद लोगों को अपना उम्मीदवार बनाया है। यहां तक कि बलात्कार और हत्या के आरोपियों को भी टिकट दी है। सियासत में ऊंची महत्वाकांक्षा लिए बैठे इस शख्स को अपराधी से गुरेज नहीं है। कुछ नाम आपको गिनाने के लिए उदाहरण स्वरूप दे रहे हैं – इलाहाबाद उत्तरी से संदीप यादव जिन पर सरेआम गुंडागर्दी करने का आरोप है। वीडियो वायरल होने पर एफआईआर दर्ज हुई। अपहरण, फर्जीवाड़े, हत्या और दबंगई के आरोपी विधायक सईद अहमद को अखिलेश ने फिर से फूलपुर का उम्मीदवार बनाया है। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले हाजी इरफान सोलंकी अखिलेश ब्रिगेड के लाडले हैं, मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति में फिट हैं। उन्हें सीसामऊ से उम्मीदवार बनाया है। यूपी सरकार में माध्यमिक शिक्षा मंत्री रह चुके विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह पर आरोपों से अखिलेश को कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे गोंडा से प्रत्याशी बनाया है। पत्रकार जगेन्द्र सिंह मर्डर केस में हत्यारोपी विधायक राममूर्ति वर्मा को ददरौल विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है।

करोड़ों के बंगले से ध्यान हटाने के लिए प्रहसन 
अखिलेश सरकार ने आजीवन एक बंगले पर कब्जा जमाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर रखा दिया। विधानसभा में विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा गया। नए विधेयक के अनुसार उत्तर प्रदेश के प्रत्येक पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला लखनऊ में दिया जाएगा। ऐसा इसलिए ताकि 200 करोड़ रुपए खर्च करके बनाए गए बंगला पर अखिलेश यादव आजीवन कब्जा कर सके। अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अपने लिए पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर रहने के लिए सरकारी खर्चे पर 6000 वर्ग फुट का विशालकाय बंगला बनवा लिया। बंगले की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका सामने का गेट विक्रमादित्य मार्ग से शुरू होता है और पिछला दरवाजा कालिदास मार्ग पर खुलता है। खून पसीने से कमाई से दिए गए टैक्स का ये बेजा इस्तेमाल है, जिससे ध्यान भटकाने के लिए अखिलेश का फैमिली ड्रामा चल रहा है।

दंगा प्रदेश बन चुके प्रदेश से ध्यान भटकाने का प्रयास
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासन में संप्रदायिक दंगा खूब फला फूला है। मुजफ्फरनगर, दादरी, कैराना, शामली, बरेली, आगरा और न जाने किन-किन शहरों में दंगे हुए। हाल ही में देवरिया जिले के मदनपुर में दंगे हुए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में पिछली सरकार की अपेक्षा 12 फीसदी से अधिक दंगे अखिलेश सरकार में हुए। अखिलेश सरकार में दंगों की संख्या 25 हजार के आंकड़े को पार कर गई। अकेले मोहब्बत की नगरी आगरा शहर में सिर्फ 2015 में 219 दंगे हुए हैं। इन दंगों से ध्यान भटकाने के लिए अखिलेश का परिवार ड्रामेबाजी में लगा हुआ है।

बचने की कोशिश कर रहे ‘गुनाहों के देवता’ 
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में अखिलेश यादव का प्रशासन बुरी तरह से फेल हो गया है। अब जनता के बीच होने वाली परीक्षा में फेल होने का भय सताने लगा है। एनसीआरबी के आकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनने के बाद यूपी में हर दिन 6433 अपराध हुए हैं और 70 फीसदी घटनाएं सपा विधायकों और सपा मंत्रियों के इलाके में हुई है। अखिलेश राज में अकेले लखनऊ में 2.78 लाख आपराधिक घटनाएं दर्ज हुई, यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि लखनऊ में 9 मे से 7 विधायक सपा के हैं, इसमें से तीन के पास तो मंत्री का दर्जा है।

मुस्लिम तुष्टीकरण नीति छिपाने का कुप्रयास
अखिलेश यादव वोट बैंक के लिए केवल और केवल मुसलमानों के पैरोकार बने रहना और दिखना चाहते हैं। इसके साथ ही हिन्दुओं में से यादव व मध्यम वर्ग के वोट के लिए ऐसा दिखने से बचना भी चाहते हैं। इसी के बीच उनका ड्रामा चल रहा है। वर्ना ये वही अखिलेश यादव हैं, कि कानून की नजर में दादरी कांड के सूत्रधार व आरोपी परिवार को फ्लैटों और 45 लाख मुआवजा बांटती है। मुस्लिम बहुल कैराना से पलायन कर रहे हिन्दुओं को रोकने की कोशिश नहीं करती है। सरकारी योजनाओं में केवल मुस्लिम कन्या के लिए प्रावधान किया है। मुस्लिम धर्म गुरु को सलाहकार नियुक्त करके उसे राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया। केन्द्र सरकार से मुसलमानों को आरक्षण देने की बात की। उर्दू जुबान और मदरसों, कब्रिस्तानों पर सरकारी खजाना लुटाने में लगे रहे।

पारिवारिक मकड़जाल में छटपटा रहा है प्रदेश 
सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को मुलायम-अखिलेश यादव परिवार ने जकड़ रखा है। मुलायम के परिवार के 20 लोग राजनीति में सक्रिय हैं। 11 सदस्य तो चुनाव जीतकर अपनी-अपनी मलाई काट रहे हैं। हालत ये है कि राजनीति में आने के लिए मुलायम ने जिस कुश्ती को अलविदा कहा अब सत्ता के लिए बाप-बेटे, भाई-भाई और चाचा-भतीजा में राजनीति की नूरा कुश्ती शुरू हो चुकी है।

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